पटना (राज टाइम्स) कोरोना संकट की आड़ में केंद्र सरकार
उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने की मंशा से श्रम कानून में बड़ा बदलाव कर मजदूरों
को 8 घंटे की जगह 12 घंटे काम कराने का काला कानून लाना चाहती है । पहले से ही
अपेक्षित और शोषित मजदूरों के साथ यह हैवानियत वाला व्यवहार है । इससे केंद्र व
राज्य सरकारों का मजदूर विरोधी चेहरा बेनकाब हो गया है । आम आदमी पार्टी की मजदूर
इकाई श्रमिक विकास संगठन (SVS) ने
आज राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल राय के निर्देश पर देश के हर जिले में संगठन के
पदाधिकारियों ने अपने अपने घरों और कार्यालयों पर एक दिवसीय सत्याग्रह रखा। बिहार
में इस सत्याग्रह का नेतृत्व श्रमिक विकास संगठन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रागनी लता
सिंह ने किया। उनके साथ उनके जगदेव पथ आवास पर दर्जनों कार्यकर्ताओं ने सोशल
डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सत्याग्रह कर बिहार सरकार से मजदूरों को 8 घंटे की
जगह 12 घंटे काम करवाने वाला काला कानून वापस लेने की मांग की।
उन्होंने कहा कि श्रम कानून में बदलाव कर
केंद्र और राज्य की सरकारें पहले से ही त्रस्त मजदूरों के साथ छलावा करने जा रही
है। केंद्र सरकार पिछले दरवाजे से उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाना चाहती है। जिसका
हम लोग अंतिम सांस तक विरोध करेंगे । श्रमिक विकास संगठन के हवाले से जानकारी दी
गई कि कोरोना वायरस से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन को करीब 2 महीने होने जा रहे
हैं । लॉकडाउन की वजह से उद्योग धंधे ठप हैं, देश
और राज्य की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बर्बाद हो रही है। उद्योगों को पटरी पर लाने
के आड़ में देश के 6 राज्य अपने श्रम कानूनों में कई बड़े श्रमिक विरोधी बदलाव कर
चुके हैं। श्रम कानूनों में बदलाव की शुरुआत राजस्थान की गहलोत सरकार ने काम के
घंटों में बदलाव को लेकर किया । इसके बाद फिर मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने बदलाव
किया तो 7 मई को उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी लगभग 3 साल के लिए श्रम कानूनों
में बदलाव की घोषणा कर दी । अब महाराष्ट्र, उड़ीसा
और गोवा सरकार ने भी अपने यहां श्रमिक विरोधी बदलाव कर दिए हैं ।
रागिनी लता सिंह ने कहा कि राज्य सरकारों
द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम और कारखाना अधिनियम, 'पेमेंट
ऑफ वेजेज एक्ट 1936' सहित
प्रमुख अधिनियम में संशोधन किए हैं । ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 को 3 साल के लिए रोक
दिया गया है । श्रमिकों के 38 कानूनों में बदलाव किए हैं जिससे ILO
कन्वेंशन
87), सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार ILO
कन्वेंशन
98), ILO कन्वेंशन 144 और साथ ही
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत 8 घंटे के कार्य दिवस का घोर उल्लंघन हो रहा है ।
श्रमिक कानून में संशोधन का मजदूरों पर
कुप्रभाव-
जैसा की ज्ञात है श्रमिक एक अनपढ़ व्यक्ति
नहीं होता है । आईटीआई वोकेशनल ट्रेनिंग हायर सेकेंडरी करने के पश्चात अर्थ-कुशल,
कुशल
एवं उच्च-कुशल को श्रमिक विभाग के अनुसार किसी भी उद्योग या ठेकेदारी प्रथा में
नौकरी दी जाती है । अब जिस प्रकार राज्य सरकारों ने श्रमिक नियमों में उद्योगों को
बढ़ावा देने का हवाला देते हुए नियमों को शिथिल किया है । उससे श्रमिक वर्ग पूरी
तरह उद्योगपतियों एवं ठेकेदारी प्रथा के हाथों की कठपुतली बन जाएगा । क्योंकि
राज्य सरकारों ने उन तमाम प्रावधानों को समाप्त कर दिया है जिसके माध्यम से
उद्योगपतियों ठेकेदारी प्रथा के हाथों पीड़ित होने पर श्रम न्यायालय एवं न्यायालय
की शरण में जा सकता था।
उद्योगपतियों को नियमों के जरिए उद्योग बढ़ावा
देने के लिए श्रमिकों से अब 8 घंटे की जगह शिफ्ट को 12 घंटे का कर दिया है।
उद्योगपतियों को यह छूट दी जा रही है कि वह सुविधा के अनुसार पाली शिफ्ट में भी
बदलाव कर सकते हैं । जिस प्रकार कानून में संशोधन किया गया है उससे यह स्पष्ट
प्रतीत होता है कि राज्य सरकारों का यह निर्णय पूर्णता श्रमिक विरोधी है । इसे
लागू होने से श्रमिकों के अधिकारों का हनन होगा ।
राज्य सरकारों द्वारा लेबर कानून के बदलाव से
मुख्य संभावित खतरे पैदा हो गए हैं-
1) उद्योगों को सरकारी व यूनियन की जांच और
निरीक्षण से मुक्ति देने से कर्मचारियों/श्रमिकों का शोषण बढ़ेगा ।
2) शिफ्ट व कार्य अवधि में बदलाव की मंजूरी
मिलने से कर्मचारियों/श्रमिकों को बिना सप्ताहिक अवकाश के प्रति दिन 8 घंटे से
ज्यादा काम करना पड़ेगा । जो कि 8 घंटे काम के एक लंबी लड़ाई के बाद प्राप्त हुए थे
।
3) श्रमिक यूनियनों को मान्यता ना मिलने से
कर्मचारियों/श्रमिकों के अधिकारों की आवाज कमजोर होगी और पूंजीपतियों का मनमानापन
बढ़ेगा. मजदूरों के काम करने की प्रस्तुति और उनकी सुविधाओं पर ट्रेड यूनियन की
दखल/निगरानी खत्म हो जाएगी ।
4) उद्योग धंधों को ज्यादा देर खोलने से वहां
श्रमिकों को डबल शिफ्ट करनी पड़ेगी जिससे शोषण बढ़ेगा ।
5) पहले प्रावधान था कि जिन उद्योग में 100 से
ज्यादा मजदूर हैं, उसे
बंद करने से पहले श्रमिकों का पक्ष सुनना होगा और अनुमति लेनी होगी,
अब
ऐसा नहीं होगा इससे बड़े पैमाने पर श्रमिकों का शोषण बढ़ेगा । उद्योगों में बड़े
पैमाने पर छंटनी और वेतन कटौती शुरू हो सकती है ।
6) अब कानून में छूट के बाद ग्रेच्युटी देने
से बचने के लिए उद्योग ठेके पर श्रमिकों की हायरिंग बढ़ा सकते हैं । जिससे बड़ी
संख्या में बेरोजगारी बढ़ेगी ।
7) मालिक श्रमिकों को उचित वेंटिलेशन,
शौचालय,
बैठने
की सुविधा, पीने का पानी,
प्राथमिक
चिकित्सा बॉक्स, सुरक्षात्मक उपकरण,
कैंटीन,
क्रेच,
सप्ताहिक
अवकाश और आराम के अंतराल प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं होंगे,
जो
कि श्रमिकों के मूल अधिकार थे ।
श्रमिक विकास संगठन (SVS)
के
राष्ट्रीय महासचिव श्री कृष्ण यादव ने कहा कि हमारा संगठन असंवैधानिक तरीके से
श्रमिक कानून में किए गए बदलाव का पूर्णता विरोध करता है । हम किसी भी सूरत में
मजदूर विरोधी इस कानून को देश में लागू नहीं होने देंगे ।
रिपोर्ट- धीरज झा
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