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बिहार चुनाव- बूथो से बुजुर्गों की छुट्टी, एक बूथ पर नहीं रहेंगे 700 से अधिक मतदाता

चुनाव आयोग को यह नियम बनाना चाहिए कि 65 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति चुनाव में उम्मीदवार नहीं बन सकता है क्योंकि इस उम्र में व्यक्ति जब अपना मत डालने मतदान केन्द्र नहीं जा सकता तो फिर चुनाव में जनता के बीच जाकर वोट कैसे माँग सकता है? राजनीतिक दलों का ऐसे व्यक्तियों को टिकट देना जनता और युवा वर्ग से साथ- साथ इन व्यक्तियों के साथ भी अन्याय होगा।

बिहार डेस्क (राज टाइम्स)। बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को पूरा हो रहा है जिसे देखते हुए चुनाव आयोग ने बिहार में चुनाव समय पर कराने की घोषणा की है परन्तु तारीखों की घोषणा अभी नहीं हुई है। इसी कड़ी में कोरोना संकट को देखते हुए कोरोना वर्ष में बिहार में चुनाव न कराने के लिए गुरुवार को पटना हाई कोर्ट में एक लोकहित याचिका दायर की गयी है। अभी इस पर माननीय न्यायालय का निर्णय आना बाकी है। बिहार में विधानसभा चुनाव कब होगा ये तो अभी निश्चित नहीं है परन्तु इस चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग ने कुछ नये नियम बनाये हैं वो ध्यान आकर्षित करने वाले हैं।


इस बार कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए प्रत्येक बुथ पर मतदाताओं की संख्या 1000 से घटाकर 700 कर दी गई है जिससे बूथों की संख्या बढ़ गई है। अतः इस बार चुनाव कर्मियों जी संख्या भी बढ़ जाएगी ।

इस बार चुनाव में जो बड़ा बदलाव किया गया है वो यह है कि 65 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों को अपना मत डालने के लिए मतदान केन्द्रों तक जाने की जरूरत नहीं रही है बल्कि ऐसे व्यक्ति अपना मत पोस्टल बैलट के जरिये डाल सकेंगे। ऐसी ही सुविधा कोरोना पाॅॅजेटिव वालों को भी प्रदान की गई है। कोरोना से बचाव और इसके फैलाव को रोकने के लिए ये एक कारगर कदम है।

निर्वाचन आयोग के इस कदम का अनुसरण राजनीतिक दलों को भी करना आवश्यक होना चाहिए। उन्हें भी 65 वर्ष से अधिक उम्र वाले व्यक्ति को चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाने पर रोक होनी चाहिए। आयोग को यह नियम बनाना चाहिए कि 65 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति चुनाव में उम्मीदवार नहीं बन सकता है क्योंकि इस उम्र में व्यक्ति जब अपना मत डालने मतदान केन्द्र नहीं जा सकता तो फिर चुनाव में जनता के बीच जाकर वोट कैसे माँग सकता है ? वो यदि चुनाव जीत भी जाए तो लोगों के बीच रहकर अपनी राजनीतिक और समाजिक जिम्मेदारी के बोझ को कैसे वहन कर सकता है ? सारी सरकारी जिम्मेदारियों से मुक्त, आराम की उम्र में, वरिष्ठ नागरिक की सारी सुविधाएँ लेने वाले ऐसे व्यक्ति सक्रिय राजनीतिक में आकर चुनाव लड़ने की जहमत कैसे उठा सकते हैं। राजनीतिक दलों का ऐसे व्यक्तियों को टिकट देना जनता और युवा वर्ग से साथ- साथ इन व्यक्तियों के साथ भी अन्याय होगा। वरिष्ठ नागरिकों के चुनाव न लड़ने से युवा पीढ़ी को राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने का अधिक अवसर प्राप्त होगा और वो नव ऊर्जा और उत्साह से कार्य कर जनता और देश की सेवा कर सकेंगे।

आलेख :- सुनिता कुमारी 'गुंजन' (सहायक प्रोफ़ेसर)

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