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बिहार- चुनाव में धन-बल व बाहुबल का बढता प्रभाव बिषयक पर एडीआर ने किया वेबिनार का आयोजन

पटना (राज टाइम्स)। बिहार इलेक्शन वाच एवं एडीआर के चुनाव में धन-बल व बाहुबल का बढता प्रभाव विषयक वेबिनार में एडीआर के प्रमुख अवकाश प्राप्त मेजर जनरल अनिल वर्मा ने कहा कि बाहुबल एवं धनबल का पिछले दस सालों में  क्रमशः 30 प्रतिशत और 21 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। उन्होंने ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि उनके चुनाव में जितने की संभावनाएँ अधिक होती हैं। पिछले पन्द्रह सालों के विश्लेषण से यह सहज ही पता चलता है कि साफ छवि के उम्मीदवारों के जीतने की संभावना 44 प्रतिशत होती है तो आपराधिक छवि के लोगों के जीतने की संभावना 56 प्रतिशत होती है। उन्होंने मतदाताओं के मतदान के व्यवहार पर जानकारी देते हुए बताया कि शहरी मतदाताओं के लिए मुख्यतः रोजगार, पानी एवं अस्पतालों के लिए प्राथमिकता है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में में मतदाताओं के प्राथमिकता में कृषि के लिए पानी एवं श्रृण अस्पताल, पेयजल आदि प्रमुख विषय होते हैं।
समाज सेवी एवं ब्रजकिशोर स्मारक प्रतिष्ठान के संस्थापक प्रेम कुमार वर्मा ने कहा कि यह रियल चुनाव नहीं है।  आयोग को उम्मीदवारों के परिचय के साथ तस्वीर सार्वजनिक रूप से करने की व्यवस्था पर सोचना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने कहा कि चुनाव में धांधली के स्वरूप में बदलाव आ गया है। कोरोना काल में चुनाव के दौरान व्यापक गडबडियो से इंकार नहीं किया जा सकता है। चेतना जगाने के लिए व्यापक रूप से अभियान चलाने की जरूरत है। चुनाव अब वर्चुअल होने लगे हैं धीरे-धीरे नेताजी भी वर्चुअल हो जायेंगे। वरिष्ठ पत्रकार अरूण कुमार पाण्डेय ने कहा कि एडीआर ने एक तस्वीर दिखाने का काम किया है लेकिन आयोग को पार्टी को रद्द करने का भी अधिकार होना चाहिए।

भागलपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभाग के अध्यक्ष प्रो प्रेम प्रभाकर ने कहा कि सामाजिक स्तर पर नेतृत्व नहीं उभर रहा है। पार्टी तंत्र मजबूत हो रहा है वहीं लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। पार्टीतंत्र पर जब तक लोकतंत्र का हमला नहीं होगा तब तक सुधार नहीं होगा। प्रोफेसर शोभाकांत चौधरी ने कहा कि आयोग, संसद और न्यायालय से ही सुधार होगा। इनपर दबाव की जरूरत है। कानून का कवच ही सुरक्षा का संचार करेगा।

प्रो रोहिताश्व दुबे ने कहा कि चुनाव खर्च की सीमा निर्धारित करना तथा नियंत्रित करना मुश्किल होता जा रहा है। प्रो पृथ्वीराज सिंह ने कहा कि तंत्र पूरी तरह निष्क्रिय होता जा रहा है। पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता प्रभाकर कुमार ने कहा कि समाज जाति, सम्प्रदाय, वर्ग में बंटा हुआ है। जब तक सामाजिक बदलाव नहीं होंगे तब तक सुधार नहीं होंगे।

सामाजिक संस्थाओं को लघु एवं दीर्घकालिक कार्यक्रमों के जरिए हस्तक्षेप करने पर सोचना चाहिए। आयोग के संविधान पर भी सोचना चाहिए।  अन्य जिलों से आए सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियो ने महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए। बिहार के अलग-अलग हिस्सों में बक्सर से उदय प्रताप, नालंदा से संजीव कुमार एवं रामविलास प्रसाद, पटना से अधिवक्ता बीके सिंहा, पत्रकार रंजन कुमार, अमृत निधि, गजेन्द सिंह, जहानाबाद से धनंजय कुमार, गया से देवाशू वाजपेयी, औरंगाबाद से सुकांत सिंह, दानापुर से देबेन्द सिंह दांगी,  बाँका से कुन्दन कुमार, वैशाली से देबेन्द सिंह, समस्तीपुर से देवकुमार, पूर्व चंपारण से दिग्विजय सिंह,  भागलपुर से शारदा श्रीवास्तव एवं अनेक छात्र, सीतमढी से उषा शर्मा,  बेगूसराय से कुमार नीरज व कुशमेद कुमार आदि ने वक्ताओं से सवाल किए ।
वेबिनार का संचालन संयोजक राजीव कुमार ने किया।

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