नमस्कार,
सबसे पहले मैं अपने स्वास्थ्य के बारे में अवगत कराता चलूँ कि मेरा स्वास्थ्य रफ्ता रफ्ता ठीक हो रहा है। आप तमाम लोगों की नेक दुआएँ और प्रार्थना हमारे आत्मशक्ति को न सिर्फ बल दिया है, बल्कि कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए इच्छाशक्ति को ज़िन्दा रखा है। मैं आशा करता हूँ कि बहुत जल्द आपके बीच आऊंगा।
इतिहास के पन्ने पलटते जाएं तो पत्रकारिता का पेशा हर ज़माने में जोखिम भरा और जानलेवा नज़र आता है। हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए पत्रकार बिरादरी की तरफ से जान न्यौछावर करने वालों में सबसे पहला नाम मौलवी मोहम्मद बाकर का आता है जिन्हें दिल्ली गेट पर तोप के गोले में बांध कर शहीद कर दिया गया था। हम अपने इन्हीं बुजर्गों के नक़्शे क़दम पर आज भी चल रहे हैं और कभी कभी डगमगा रहे हैं। हमारे खून में क़ुर्बानी और हालात से लड़ने का जज़्बा उस दिन भी था और आज भी है।
हम पत्रकार ही है जो लोगों की गालियां सुनकर मुश्किल और विपरीत परिस्थियों में भी सच्चाई को जनता तक ला रहे हैं। हम पत्रकार ही देश-दुनिया के भ्रष्ट राजनेताओं के कारनामे हो या सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार, जनता तक पहुंचा रहे हैं। हम पत्रकार ही भ्र्ष्टाचार में शामिल राजनेताओं, सरकारों, प्रशासन, माफियाओं और अपराधियों के गठजोड़ का पर्दाफाश कर रहे हैं और इन सभी का पर्दाफाश करते हुए हम पत्रकार ही अपनी जान भी गंवा रहे हैं। क्योंकि पत्रकार आज भी अपने उसूलों और फ़र्ज़ से भटका नही है। हाँ, कुछ पत्रकारों की वजह से हम पर उंगलियां जरूर उठी हैं, हमारी ईमानदारी व दयानतदारी पर शक जरूर किया गया है, बावजूद इसके हम अपने काम के प्रति समर्पित हैं।
आज के वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को चपेट में ले रखा है। दुनिया भर में इस वायरस से संक्रमित होने वाले जान गंवा रहे हैं, उनमें अन्य लोगो के साथ हमारे कई पत्रकार साथी भी हैं जो अपने फ़र्ज़ के प्रति लोगो की समस्या अवगत कराने मैदान में डंटे रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान जहाँ आम लोगो को घरों में सुरक्षित रहने का निर्देश दिया जाता है वहीं एक पत्रकार कोरोना के फ्रंट लाइन वारियर्स की तरह हर दिन अपनी जान हथेली पर रख इस वायरस से लड़ कर अपना फर्ज निभा रहा है। कुछ पत्रकार साथी ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए इस महामारी में जान तक न्योछावर कर दिया। हमारे वो साथी जो इसमे शहीद हुए क्या उनके जान की कोई कीमत नही।
लोग अक्सर कोरोना वारियर्स की लाइन में डॉक्टर, नर्स, सफाईकर्मी को ही क्यों रखते हैं, बेशक ये लोग भी एक योद्धा की तरह हैं तो फिर हमारी मेहनत और जाँफिशानि किस दर्जे में है? जन जन की आवाज़ सरकार तक पहुंचाने वाले पत्रकारों को योद्धा की श्रेणी में क्यों नही रखा गया? सरकार की फेहरिस्त में हमे अनदेखा क्यों किया जा रहा है? सरकार को इसे संजीदगी से लेना होगा और अगर कोई पत्रकार रिपोर्टिंग के दौरान संक्रमित हो और अल्लाह न करे वो अपनी जान गंवा बैठे तो सरकार उसे शहीद का दर्जा देते हुए उसके घर वालों को सरकारी लाभ दे, ये हमारी मांग नही बल्कि हक़ है।
हमारी हैसियत किसी के लिए एक फर्द की हो सकती है मगर याद रखें हम अपने घर वालो के लिए एक संसार हैं। रिपोर्टिंग के दरम्यान हमसे ही कुछ चूक हुई होगी जिसका खमियाज़ा आज मैं भुगत रहा हूं। अल्लाह न करे, ये दिन हमारे किसी भी साथी को देखना पड़े। क्योंकि आपका रहना जनता के लिए एक उम्मीद का रहना है। फिल्ड में काम करने वाले साथी जानते है कि हमलोगो को रिपोर्ट के सिलसिले में प्रतिदिन दर्जनों लोगो से मिलना होता है, ऐसे में कभी कभी खुद के ही सुरक्षा में चूक हो जाती है जो हम से भी हुई।
हम आप तमाम पत्रकार साथी के लिए दुआ करते हैं कि आप अपने कर्तव्य का पालन अपनी हिफाज़त खुद करते हुए अंज़ाम दें। मास्क का पालन अवश्य करें, सेनेटाइजर साथ मे रखें और समय समय पर उपयोग करें। आपकी अच्छी स्वास्थ्य ही हमारी कामना है।
आपका
आरिफ इक़बाल (आइसोलेशन वार्ड से)
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