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BIHAR - पंचायत की रीढ़ होते हैं 'वार्ड सदस्य'

लेखक- राजीव कुमार (बिहार ईलेक्शन वाच)

पटना (राज टाइम्स)। बिहार में पंचायतें मुखिया की पंचायत बन कर रह गयी हैं। मुखिया पद के लिए विशेष आकर्षण होता है, जबकि सदस्यों से पंचायत बनती हैं, जिसमें पंचायत सदस्यों की सबसे बड़ी भूमिका होती है। पंचायत सदस्य पंचायत की रीढ़ होते हैं। बिहार, छत्तीसगढ़ व ओड़िशा जैसे राज्यों में सदस्य, तो जम्मू में पंच बोला जाता है। लेकिन संवैधानिक नाम पंचायत सदस्य ही है। पश्चिम बंगाल में पंचायत के सदस्य मुखिया को चुनते हैं, लेकिन बिहार में मुखिया का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है। बिहार में छह पदों के लिए चुनाव होते हैं। इनमें पंचायत सदस्य एवं मुखिया के लिए अलग- अलग चुनाव होते हैं। पंचायत सदस्य या वार्ड सदस्य गांव की सरकार का मंत्री होता है, लेकिन उसकी कोई भूमिका नहीं। वह आज खुद को उपेक्षित समझता है। स्थिति यह है कि पंचायत सदस्यों को निरर्थक पद माना जाने लगा है, लेकिन यह सच्चाई नहीं है। बिहार में 2016 के पूर्व वार्ड सदस्यों को लेकर ज्यादा रुचि नहीं हुआ करती थी क्योंकि इसे 'मलाईदार' पद नहीं माना जाता था, लेकिन वर्तमान एनडीए सरकार ने वार्ड सदस्यों को नल-जल योजना सहित अन्य योजनाओं में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है।  वित्तीय अधिकार भी दिये गये। सात निश्चय जैसे कार्यक्रम में 'वार्ड क्रियान्वयन एवं प्रबंधन समिति के अध्यक्ष वार्ड के सदस्य ही होते हैं जिनको अपने अपने वार्डों में नल-जल योजना जैसे कल्याणकारी कार्यक्रम में विशेष भूमिका निर्धारित की गयी है। इन योजनाओं का ही नतीजा है कि 2021 के पंचायत चुनाव में वार्ड सदस्यों के उम्मीदवारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होने का अंदेशा है। यही वजह है कि राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रतीक चिह्न की संख्या में इजाफा किया है, लेकिन दूसरे राज्यों में वार्ड सदस्यों के पदों को लेकर आज भी कोई आकर्षण नहीं है। 

उत्तर प्रदेश में 2015 के पंचायत चुनाव में एक लाख 35 हजार पदों पर कोई प्रत्याशी ही नहीं मिला. फलतः 22 प्रतिशत पंचायत का नोटिफिकेशन नहीं हो पाया था। पंचायत की समितियां वार्ड के सदस्यों से बनती हैं। वार्ड सदस्य सभी समितियों में सदस्य होते हैं, लेकिन वार्ड क्रियान्वयन एवं प्रबंधन समिति के अध्यक्ष वार्ड के सदस्य ही होते हैं। अच्छे लोग यदि वार्ड सदस्य बनते हैं, तो स्वभाविक रूप से पंचायतें स्वस्थ होंगी। समितियों के सदस्य होने के बावजूद वार्ड के सदस्यों को यह ज्ञात नहीं होता कि आखिर उनकी भूमिका क्या है। वार्ड सदस्य सबसे बुनियादी इकाई हैं, जिनको प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा निर्वाचित किया जाता है। एक जननेता के रूप में, लोक सेवक के रूप में समिति के सदस्य के रूप में अध्यक्ष के रूप में वार्ड के सदस्यों की भूमिका महत्वपूर्ण है। 

साजिश के तहत पंचायत को एजेंसी और मुखिया को उसका ठेकेदार बना दिया गया है। जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित जननेताओ को प्रयाप्त प्रशिक्षण देकर हम पंचायत को नई दिशा दे सकते हैं। ऊर्जा से भर सकते हैं। वैसे युवा जो मुखिया का चुनाव लडने में असमर्थ है और समाज के लिए "सेवा" करना चाहते हैं, उनके लिए वार्ड सदस्य से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। अच्छे उम्मीदवारों को सिविल सोसाइटी प्रेरित कर सकती है। पंचायत के सभी सदस्यों को भारतीय संहिता 1860 (अधिनियम 45 ,1860 ) की धारा 21 के अन्तर्गत लोक सेवक समझा जाएगा। यह कानून है, लेकिन उन्हे इसका ज्ञान नहीं। जरूरत है हजारों की संख्या में निर्वाचित इन लोक सेवकों को मुख्यधारा में शामिल करने की। साथ ही समाज के लिए कर गुजरने की तमन्ना रखने बालों को पंचायत सदस्य बनकर समाज के विकास के लिए बेहतर करने की।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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